मैं वो ग़ज़ल हूँ जिसको तारीफ न मिली
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
सब गुनगुना के चल दिए महफ़िल में साज़ पे
कोई गौर करे, फरमाये, तहजीब ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...........
अहसास की दरियाएं आँखों से बाह चली
वो भी जलीं की ग़म को तासीर आ मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...................................
जिसे कर सकूँ फ़ना मैं उनके ही सामने
ऐसी तो ज़िन्दगी क्या, तारीख ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
सब गुनगुना के चल दिए महफ़िल में साज़ पे
कोई गौर करे, फरमाये, तहजीब ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...........
अहसास की दरियाएं आँखों से बाह चली
वो भी जलीं की ग़म को तासीर आ मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली...................................
जिसे कर सकूँ फ़ना मैं उनके ही सामने
ऐसी तो ज़िन्दगी क्या, तारीख ना मिली
मैं वो ग़ज़ल हूँ किसको तारीफ ना मिली
एक रूह रह गया हूँ तसरीफ ना मिली
-:रिशु कुमार दुबे "किशोर":-
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